शहर की इस दौड़ में दौड़के करना क्या हैं ?
जब यही जीवन है दोस्तों, तो फ़िर मरना क्या हैं ?
पहली बारीश मे ट्रेन लेट होने की फ़िक्र है
भुल गए भीगते हुए टहलना क्या है ?
"Serials" के किरदारों का सारा हाल है मालूम
पर माँ का हाल पूछने की फ़ुरसत किसे है ?
अब रेत पे नंगे पाँव टहलते क्यों नहीं ?
एक सौं आठ हैं चैनल फ़िर दिल बहलते क्यों नहीं ?
"Internet" की दुनिया के तो Touch मे हैं,
लेकीन पडोस मे कौन रहता हैं जानते तक नहीं.
"Mobile", "Landline" सब की भरमार हैं,
लेकीन जिगरी दोस्त तक पहुँचें ऐसे तार कहाँ हैं ?
कब डुबते हुए सूरज को देखा है, याद हैं ?
कब जाना था शाम का वो बनना क्या हैं ?
तो दोस्तों शहर की इस दौड़ में दौड़के करना क्या हैं ?
जब यही जीवन है दोस्तों, तो फ़िर मरना क्या हैं ?
Friday, January 25, 2008
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